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ग़ज़ल
कुछ शुऊरी सतह पर कुछ ला-शु'ऊरी तौर पर
कार-ए-फ़िक्रो-ओ-फ़न में अब सब की मदद करता हूँ मैं
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
ये सतह-ए-ख़ाक है क्या रज़्म-गाह का मैदान
कि जिस पे होती हुई नित लड़ाइयाँ देखीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कब तलक रोके रक्खूँ मैं पानियों की तह में साँस
क्यूँ न इक दिन सतह-ए-दरिया से निकल के साँस लूँ
रफ़ीक़ संदेलवी
ग़ज़ल
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी