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ग़ज़ल
हिज्र के दरिया में तुम पढ़ना लहरों की तहरीरें भी
पानी की हर सत्र पे मैं कुछ दिल की बातें लिक्खूंगा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
हमें सर-कशी से मुक़द्दरों को बदलना आया नहीं अभी
मगर ऐसा करना मोहब्बतों में रिदा न हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
न हो वहशत-कश-ए-दर्स-ए-सराब-ए-सत्र-ए-आगाही
मैं गर्द-ए-राह हूँ बे-मुद्दआ है पेच-ओ-ख़म मेरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शिकस्ता सत्र चाहे रंग-ओ-बू-ए-पैरहन ठहरे
किसी सूरत मुझे इज्ज़-ए-हुनर अच्छा नहीं लगता
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
अख़्तर हुसैन जाफ़री
ग़ज़ल
साइल देहलवी
ग़ज़ल
रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़
क्या नहीं इंसाँ की गर्दन पर धुआँ बत्ती चराग़