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ग़ज़ल
अभी सुकूत है सेहरा है धूल उड़ती है
इन्हीं दो आँखों से पहले नदी भी गुज़री थी
धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
ग़ज़ल
उन्हीं के सर रहा सेहरा उन्हीं को ताज क़ुर्बां हो
जिन्होंने फाड़ कर कपड़े रखा सर पर कफ़न पहले
विनायक दामोदर सावरकर
ग़ज़ल
बाँधा है बर्ग-ए-ताक का क्यूँ सर पे सेहरा
किया 'आबरू' का ब्याह है बिंत-उल-एनब सेती
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
नाम पर सालार-ए-दिल के इश्क़-ए-कूड़ा फिर कोई
गा हिना दोला मदद जल्वा मदद सेहरा मद
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जीवन की बगिया से हम को क्या सुंदर सौग़ात मिली
फूलों का सेहरा बाँधा तो शो'लों की बारात मिली
सोहन राही
ग़ज़ल
कफ़-ए-सेहरा-ए-हस्ती से ख़ुमार-ए-सूफ़िया ले कर
अनल-हक़ भी पुकारे जा चराग़-ए-ला-मकाँ हो जा
रिज़वान अंजुम
ग़ज़ल
'सुख़न' की बज़्म में 'नादिर' उसी के सर पे सेहरा है
रहा जो हम-नवा-ए-बुलबुल-ए-हिन्दोस्ताँ हो कर
नादिर काकोरवी
ग़ज़ल
मैं जाऊँ क्यूँकर निकल के सेहरा से राह-ए-गुलशन
न आलम-ए-रंग भाए मुझ को न निकहत-ए-गुल