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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
क्यूँकर हम इम्तिहान दें सोएँगे जा के बाग़ में
पढ़ने को आधी रात तक कोई हमें जगाए क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
क़िस्मत से शिकायत है गिला तुझ से नहीं है
तू ने जो दिया दर्द वो हँस हँस के सहेंगे