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ग़ज़ल
न सफ़र ब-शर्त-ए-मआ'ल है न तलब ब-क़ैद-ए-सवाल है
फ़क़त एक सेरी-ए-ज़ौक़ को मैं भटक रहा हूँ कहाँ कहाँ
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
ये फ़ाक़ा-कश कि जिन्हें हैफ़ ख़ुद-फ़रेबी में
शिकम की सेरी को पानी बिलोना पड़ता है
महेंद्र प्रताप चाँद
ग़ज़ल
खानों से मनों ग़म के भी सेरी नहीं होती
क्या मुझ को खिला दी कहीं इक्सीर किसी ने
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
क्यूँ कर हो हरीस-ए-सितम-ए-इश्क़ की सेरी
ग़म रिज़्क-ए-मुक़द्दर है सिवा हो नहीं सकता