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ग़ज़ल
नहीं है आज भी शाइस्ता-ए-आदाब-ए-मय-नोशी
वो इक रिंद-ए-बला-कश जिस का 'ताबाँ' नाम है साक़ी
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
हुस्न शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-अलम है शायद
ग़म-ज़दा लगती हैं क्यूँ चाँदनी रातें अक्सर
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
है दिल में हुज़ूरी की तमन्ना तो जबीं को
शाइस्ता-ए-आदाब-ए-हरम करते रहेंगे
सय्यद मुज़फ़्फ़र अहमद ज़िया
ग़ज़ल
वो दिल जो कुश्ता-ए-ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ न था
शाइस्ता-ए-नवाज़िश-ए-दौर-ए-जहाँ न था
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ
मैं तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ को अगर छेड़ न दूँ