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ग़ज़ल
जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मक़ाम-ए-बंदगी दे कर न लूँ शान-ए-ख़ुदावंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ख़ैरात की जन्नत ठुकरा दे है शान यही ख़ुद्दारी की
जन्नत से निकाला था जिस को तू उस आदम का पोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
जब भी कोई तख़्त सजा है मेरा तेरा ख़ून बहा है
दरबारों की शान-ओ-शौकत मैदानों की शमशीरें हैं
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
कोई बात दिल में वो ठान के न उलझ पड़े तिरी शान से
वो नियाज़-मंद जो सर-ब-ख़म कई दिन से तेरे हुज़ूर है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ख़ुदा की शान है मैं जिन को दोस्त रखता था
वो देखते भी नहीं अब नज़र उठा के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बहुत ही ख़ूब शय है इख़्तियारी शान-ए-ख़ुद्दारी
अगर मा'शूक़ भी कुछ और बे-परवा न हो जाए
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तिरी शान-ए-तग़ाफ़ुल पर मिरी बर्बादियाँ सदक़े
जो बर्बाद-ए-तमन्ना हो उसे बर्बाद रहने दे