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ग़ज़ल
मज़े लूँ दर्द के मैं थोड़े थोड़े ज़ुल्म सह-सह कर
सितम कीजे तो थम थम कर जफ़ा कीजे तो रह-रह कर
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
सर-ए-शाख़-सार गुलाब हैं ये जो ख़्वाब हैं
कभी ख़ार-ज़ार-ए-अज़ाब हैं ये जो ख़्वाब हैं
मोहम्मद फ़ीरोज़ शाह
ग़ज़ल
मुसव्विर करंजवी
ग़ज़ल
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
शम्अ' नहिं शर्मिंदा और मह देख रुख़ को दंग था