aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shaam-e-aish"
ऐ 'ऐश' है फ़र्सूदा अब क़ैस का अफ़्सानाउल्फ़त तो किसी की भी जागीर नहीं होती
हर रविश उन की क़यामत है क़यामत ऐ 'ऐश'जिस तरफ़ जाते हैं इक हश्र बपा होता है
ऐ 'ऐश' जब से बादा-ए-ला-तक़्नतू मिलाबाक़ी रहा न डर हमें रोज़-ए-हिसाब का
हर बज़्म-ए-नशात ऐ 'ऐश' हुई उस शोख़ के जलवों से रौशनकाशाना-ए-ग़म में जल्वा-फ़गन लेकिन वो दिल-आरा हो न सका
एक दीवार-ए-जिस्म बाक़ी हैअब उसे भी गिरा दिया जाए
इक इक पलक पे छाई है महरूमियों की शामज़ब्त-ए-सुख़न की आग में जलते लबों को देख
कुछ तो कहती है सर-ए-शाम समुंदर की हवाकभी साहिल की ख़ुनुक रेत पे जाएँ तो सही
इक पल में ही बतला गईं दम तोड़ती किरनेंवो राज़ जो ऐ 'शाम' न पाया मुझे दिन-भर
यादें खुले किवाड़ ये महकी हुई फ़ज़ाकौन आ रहा है शाम ये ठंडी हवा के ब'अद
किस तरह छोड़ दूँ इस शहर को ऐ मौज-ए-नसीमयहीं जीना है मुझे और यहीं मरना है मुझे
खोए हैं उस के सेहर में ही अहल-ए-कारवाँउस की नज़र जो वक़्त-ए-सफ़र रंग बो गई
कैसी उजड़ी है ये महफ़िल 'ऐश' हंगाम-ए-सहरशम-ए-कुश्ता है कहीं और ख़ाक-ए-परवाना कहीं
कुछ ऐसे की है अदा रस्म-ए-बंदगी मैं नेगुज़ार दी तिरे वा'दे पे ज़िंदगी मैं ने
है 'ऐश' साथ कोई राहबर न हमराहीकटेगी देखिए तन्हा रह-ए-वफ़ा कैसे
ज़ुल्फ़ ओ रुख़ दैर ओ हरम शाम ओ सहर 'ऐश' इन मेंज़ुल्मत-ए-कुफ़्र भी है जल्वा-ए-इस्लाम भी है
देख सौदा-जादा-ए-उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ ऐ 'ऐश'वादी-ए-इश्क़ में क्या क्या तग-ओ-पू करते हैं
अक्सर हुआ ऐसा कि भरे घर में सर-ए-शामतन्हाई के आसेब दर-ओ-बाम से बरसे
तमाम जुस्तुजू-ए-शौक़ राएगाँ ऐ 'शाम'मुझे ख़बर है पस-ए-इंतिज़ार क्या होगा
तिरे ख़याल का जब सेहन-ए-दिल में चाँद खिलेउदास शाम को मंज़र सा कुछ नया भी दे
इस सफ़र में भी मुझे ऐ 'शाम' मायूसी मिलीख़्वाहिशें कट कर गिरीं महरूमियों की धार से
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