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ग़ज़ल
अब आसमाँ भी बड़ा शांत है ज़मीं भी सुखी
गुज़र गया है जो हम पर गुज़रने वाला था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
अभी तक जो किनारे से ब-ज़ाहिर शांत लगता था
उसी दरिया को अब तूफ़ाँ पस-ए-तूफ़ाँ भी होना था
नश्तर ख़ानक़ाही
ग़ज़ल
निराश चाँद तीरगी में घुल के शांत हो गया
'सहर' मैं नींद में चली तो ख़्वाब से निकल गई
शहनाज़ परवीन सहर
ग़ज़ल
गाड़ी की रफ़्तार भी तेज़ है रस्ता भी है ना-हमवार
धीरे धीरे शांत हुआ हूँ पहले तो मैं बहुत डरा
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
ऐ मरघट की शांत चिताओ तुम ने क्या महसूस किया
उठती हैं दुनिया से लाशें आख़िर क्या विश्वास लिए
विनोद अश्क
ग़ज़ल
फ़ुग़ाँ को ज़मज़मा कर दे जुनूँ को शांत करे
ये रंग भी तो मिरे यार-ए-ख़ुश-ख़िसाल में है
काविश अब्बासी
ग़ज़ल
सुख की नय्या हाथ आए तो जीवन आशा पार लगे
मन ही शांत न हो तो जीवन दुख-सागर का धारा है
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'
शर्त ये है कोई बाँहों में सँभाले मुझ को