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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ुशी के वास्ते पैदा हुआ है कौन दुनिया में
मगर हम भी अहल-ए-दर्द के शायाँ नहीं होता
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
विर्द-ए-ज़बाँ है रोज़-ओ-शब इन की सना-ए-हुस्न
शायाँ है जिस क़दर कि ये शाएर ग़ुलू करें