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ग़ज़ल
कल शब-ए-वस्ल-ए-अदू 'लुत्फ' तो आया होगा
रश्क से आप से शायद कि मिला हो कि न हो
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
है शब-ए-वस्ल-ए-अदू और ज़माना महजूर
क्यूँ न बिस्तर के लिए गुल की जगह ख़ार बिके