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ग़ज़ल
रह-ए-शहादत पे सर के हमराह इक आसेब चल रहा है
हमीं न निकलें यज़ीद-ए-दौरां कि ख़ुद को शब्बीर कर रहे हैं
आक़िब साबिर
ग़ज़ल
इकलौती जागीर को तकते तकते थक कर सो जाते हैं
हम तेरी तस्वीर को तकते तकते थक कर सो जाते हैं
शब्बीर एहराम
ग़ज़ल
आज नज़र-अंदाज़ हुए तो बात है क्या हैरानी की
आयत जैसे लोग मिले और हम ने रु-गर्दानी की
शब्बीर हसन
ग़ज़ल
जब से मद्धम मिरी क़िस्मत के सितारे हुए हैं
नफ़' के नाम पे भी मुझ को ख़सारे हुए हैं
शब्बीर एहराम
ग़ज़ल
निगाह-ए-दिल से जिस दिन उस्वा-ए-शब्बीर देखेंगे
ख़लीलुल्लाह अपने ख़्वाब की ता'बीर देखेंगे
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
ग़ज़ल
घबराने से क्या काम 'मुनीर'-ए-जिगर-अफ़्कार
तू अर्ज़ तो कर हज़रत-ए-शब्बीर से पहले