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ग़ज़ल
'सिब्तैन' शहर-ए-इल्म-ओ-अदब के नसीब में
होते हैं हम से अहल-ए-क़लम मुद्दतों के बाद
सिब्तैन शाहजहानी
ग़ज़ल
हम से जिस के तौर हों बाबा देखोगे दो एक ही और
कहने को तो शहर-ए-कराची बस्ती दिल-ज़दगाँ की है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच