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ग़ज़ल
जमेगी कैसे बिसात-ए-याराँ कि शीशा ओ जाम बुझ गए हैं
सजेगी कैसे शब-ए-निगाराँ कि दिल सर-ए-शाम बुझ गए हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कुछ दिन से इंतिज़ार-ए-सवाल-ए-दिगर में है
वो मुज़्महिल हया जो किसी की नज़र में है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए
जो क़ातिल थे मक़्तूल हुए जो सैद थे अब सय्याद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलाएँगे राह-ए-ख़ुदा ऐसे नहीं होता