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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
कूच सब कर गए दिल्ली से तिरे क़द्र-शनास
क़द्र याँ रह के अब अपनी न गँवाना हरगिज़