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ग़ज़ल
तिरे बदन की नज़ाकतों का हुआ है जब हम-रिकाब मौसम
नज़र नज़र में खिला गया है शरारतों के गुलाब मौसम
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जिन अँखड़ियों में न था कुछ शरारतों के सिवा
उन अँखड़ियों में नहीं कुछ भी हसरतों के सिवा
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
होश-ओ-जुनूँ भी अब तो बस इक बात हैं 'फ़िराक़'
होती है उस नज़र की शरारत कहाँ कहाँ