आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "shekh"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "shekh"
ग़ज़ल
यूँ पीर-ए-मुग़ाँ शेख़-ए-हरम से हुए यक-जाँ
मय-ख़ाने में कम-ज़र्फ़ी-ए-परहेज़ बहुत है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नए मंसूर हैं सदियों पुराने शेख़-ओ-क़ाज़ी हैं
न फ़तवे कुफ़्र के बदले न उज़्र-ए-दार ही बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मज़ाक़-ए-इश्क़ नहीं शेख़ में ये है अफ़्सोस
ये चाशनी भी जो होती तो क्या से क्या होते
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
फिर तो यारों ने भजन गाने की खुल कर ठान ली
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
आज कुछ और दिनों से है सिवा इस्तिग़राक़
अज़्म-ए-तस्ख़ीर फिर ऐ शेख़-ए-ज़मन किस का है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
बहुत समझे हुए है शेख़ राह-ओ-रस्म-ए-मंज़िल को
यहाँ मंज़िल को भी हम जादा-ए-मंज़िल समझते हैं
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
शेख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल
फ़िक्र-ए-उक़्बा वो करें हम ख़िदमत-ए-दुनिया करें
अहसन मारहरवी
ग़ज़ल
कहीं 'ग़ालिब' की हैं नज़्में कहीं चकबस्त की हैं
शेख़-ओ-पण्डित ने है मिल-जुल के सँवारी उर्दू
नावक लखनवी
ग़ज़ल
जुम्बिश में न ला सुब्हा-ए-इस्लाम को ऐ शेख़
नाज़ुक है मिरा रिश्ता-ए-ज़ुन्नार न टूटे
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
ग़ज़ल
हाँ वही फिर का'बा बन जाएगा ऐ शेख़-ए-हरम
बुत-कदे का पहले नक़्शा खींच फिर नक़्शा बिगाड़
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शेख़ साहब आप को बुत-ख़ाने में लाया 'मुनीर'
पीर-ओ-मुर्शिद बंदा-ए-दरगाह ने धोका दिया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
देखना गर हो तो आओ मैं दिखा दूँ तुम को
बन गया शेख़-ए-हरम बुत-कदा-ए-दिल क्यूँकर
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
कुछ आज ये भी आता है रिंदो पिए हुए
पड़ते हैं बहके बहके जो शेख़-ए-ज़मन के पाँव