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ग़ज़ल
शोर-ए-तूफ़ान-ए-हवा है बे-अमाँ सुनते रहो
बंद कूचों में रवाँ है ख़ून-ए-जाँ सुनते रहो
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
हाँ ख़ुद-आज़ार हैं दानिस्ता सज़ा चाहते हैं
ऐसी दुनिया से तो हम कर्ब-ओ-बला चाहते हैं
रशीद कौसर फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
अब इम्तियाज़-ए-जल्वा-गह-ओ-जल्वा-गर कहाँ
मेरी नज़र में पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर कहाँ