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ग़ज़ल
रोने की ये शिद्दत है कि घबरा गईं आँखें
अश्कों की ये कसरत है कि तंग आ गईं आँखें
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
'शिफ़ा' ईसार में पाबंदी-ए-दैर-ओ-हरम कैसी
मिरे सज्दों में क़ैद-ए-आस्ताँ बाक़ी न रह जाए
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
हम तो पाबंद-ए-मोहब्बत हैं 'शिफ़ा' अब क्या करें
वर्ना जो चाहा हुआ ये आह में तासीर थी
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
किस को सौदा तिरा ए ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ होगा
कौन पाबंद-ए-बला-ए-शब-ए-हिज्राँ होगा
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
शिद्दत-ए-शौक़ से अफ़्साने तो हो जाते हैं
फिर न जाने वही आशिक़ कहाँ खो जाते हैं
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
आरिज़-ए-यार नहीं अक्स-फ़गन पानी में
गुल-ए-शादाब का फूला है चमन पानी में