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ग़ज़ल
वो अपनी शोख़ियों से कोई अब तक बाज़ आते हैं
हमेशा कुछ न कुछ दिल में शरारत आ ही जाती है
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
वो अपनी शोख़ियों से कोई अब तक बाज़ आते हैं
हमेशा कुछ न कुछ दिल में शरारत आ ही जाती है
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
शब को जब अबरू-ओ-मिज़्गाँ की सफ़-आराई हुई
शोख़ियों में दब गई शर्म-ओ-हया आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
क़ुसूर उन की निगाहों की शोख़ियों का भी है
हमारी जुर्रत-ए-शौक़-ओ-तलब बढ़ाने में
अनवारूल हसन अनवार
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
फ़रेब खा के तिरी शोख़ियों से क्या पूछें
हयात ओ मर्ग में किस की तरफ़ इशारा था
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
मिरी निगाह हमेशा अदब की हद में रही