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ग़ज़ल
सुर्ख़ी में नहीं दस्त-ए-हिना-बस्ता भी कुछ कम
पर शोख़ी-ए-ख़ून-ए-शोहदा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
आह वो शो'ला है जो जी को बुझा के उट्ठे
दर्द वो फ़ित्ना है जो दिल को बिठा के उट्ठे
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
हाँ हाँ तिरी सूरत हसीं लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इक शख़्स के अशआ'र से शोहरा हुआ क्या क्या तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उस को भी जला दुखते हुए मन इक शो'ला लाल भबूका बन
यूँ आँसू बन बह जाना क्या यूँ माटी में मिल जाना क्या