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ग़ज़ल
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मोहब्बत हो तो जाती है मोहब्बत की नहीं जाती
ये शो'ला ख़ुद भड़क उठता है भड़काया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
रोता हूँ मैं उन लफ़्ज़ों की क़ब्रों पे कई बार
जो लफ़्ज़ मिरी शोला-बयानी में मरे हैं
एजाज़ तवक्कल
ग़ज़ल
लिपटना पर्नियाँ में शोला-ए-आतिश का पिन्हाँ है
वले मुश्किल है हिकमत दिल में सोज़-ए-ग़म छुपाने की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
गर रंग भबूका आतिश है और बीनी शोला-ए-सरकश है
तो बिजली सी कौंदे है परी आरिज़ की चमक फिर वैसी ही
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
है अब्र तो क्या चाहे फ़लक को भी जला दे
बिजली में कहाँ शोला-फ़िशानी मिरे दिल की