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ग़ज़ल
शफ़ीक़ बरेलवी
ग़ज़ल
क्या शुस्तगी हो उस के मज़ामीन में 'जलाल'
जिस को नसीब सोहबत-ए-अहल-ए-ज़बाँ न हो
क़ाज़ी जलाल हरीपुरी
ग़ज़ल
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
जुनूँ वालों की ये शाइस्तगी तुर्फ़ा-तमाशा है
रफ़ू भी चाहते हैं चाक-दामानी भी करते हैं
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दिल को खोया ख़ुद भी खोए दुनिया खोई दीन भी खोया
ये गुम-शुदगी है तो इक दिन ऐ दोस्त तुझे भी खोना है