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ग़ज़ल
इस क़दर मज़बूत मौसम पर रही किस की गिरफ़्त
मैं कि मुझ से सीना-ए-आब-ओ-हवा रौशन हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
रौज़ा-ए-अक़्दस पे आकर क्यों न ठहरें क़ाफ़िले
बाइ'स-ए-तस्कीन-ए-दिल है आस्ताना आप का
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
अगर वो सीना-ए-पुर-दाग़-ए-आशिक़ाँ में नहीं
तो फिर कहाँ हैं वो तारे जो आसमाँ में नहीं
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
फिर हम थे और रौज़ा-ए-अक़्दस की जालियाँ
अरमान क्या बताऊँ कि क्या क्या मचल गए
तहनियतुन्निसा बेगम तहनियत
ग़ज़ल
हर दाग़-ए-ताज़ा यक-दिल-ए-दाग़ इंतिज़ार है
अर्ज़-ए-फ़ज़ा-ए-सीना-ए-दर्द इम्तिहाँ न पूछ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अब के भी रौज़ा-ए-अक़्दस पे रसाई न हुई
और फिर शूमी-ए-तक़दीर का रोना क्या है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
रूह-ए-'नासिख़' है उसी की रूह-ए-अक़्दस पर निसार
बारहा जिस के लिए रूहुल-क़ुदुस नाज़िल हुआ
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
मताअ'-ए-सीना-ए-अहल-ए-नज़र हैं चंद आँसू
सदफ़ के पास गुहर के सिवा कुछ और नहीं