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ग़ज़ल
बे-दख़्ल दिल से मैं ने किया ख़्वाहिशात को
हैरत में डाल आया हूँ मैं काएनात को
माजिद जहाँगीर मिर्जा
ग़ज़ल
हक़ीक़त को अजब अंदाज़ से झुठलाया जाता है
ज़माने को ख़ुदा के नाम पर बहकाया जाता है
ओम प्रकाश लाग़र
ग़ज़ल
यूँ तरक़्क़ी का हमें सपना दिखाया जा रहा है
गाँव चुपके से अमीरों को लुटाया जा रहा है
गुरबीर छाबरा
ग़ज़ल
कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
चली है कैसी हवा इलाही कि हर तबीअत में बरहमी है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मैं क्या बताऊँ कि मक़्सूद-ए-जुस्तुजू क्या है
मिरी निगाह को सदियों से आरज़ू क्या है
सिराजुद्दीन सिराज
ग़ज़ल
मत टकराना पत्थर बन कर आहन हम हो जाएँगे
प्यार से आ कर तुम जो मिलोगे गुलशन हम हो जाएँगे
सफ़ीया राग अलवी
ग़ज़ल
शाख़-ए-जज़्बात पे नग़्मात का मंज़र ख़ामोश
ग़म की आग़ोश में अरमाँ का कबूतर ख़ामोश