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ग़ज़ल
सिलसिला-दर-सिलसिला जुज़्व-ए-अदा होना ही था
आख़िरश तेरी नज़र का मुद्दआ होना ही था
ज़ुल्फ़िकार नक़वी
ग़ज़ल
कहीं क़ियाम न था क़ाफ़िला सफ़र में रहा
ग़ुबार सिलसिला-दर-सिलसिला नज़र में रहा
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
ग़ज़ल
मैं सिलसिला-दर-सिलसिला इक नामा-ए-रौशन
किस हर्फ़-ए-बशारत का दबिस्ताँ हूँ बताओ
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
कल मैं ख़ुद से सिलसिला-दर-सिलसिला मिलता रहा
आलम-ए-तन्हाई जैसे दश्त-ए-तन्हाई के बाद
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
उमीद-ए-सिलसिला-दर-सिलसिला लुत्फ़-ओ-दवाम इस में
बहार-ए-उम्र-ए-फ़ानी जावेदाँ यूँ भी है और यूँ भी
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
मैं असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानाँ मुझ को आज़ादी कहाँ
सिलसिला-दर-सिलसिला है सिलसिला ज़ंजीर का
मीर अंजुम परवेज़
ग़ज़ल
आरज़ू नायाफ़्त की है सिलसिला-दर-सिलसिला
है नुमूद-ए-कर्ब-ए-ला-हासिल भी हासिल के क़रीब
आलमताब तिश्ना
ग़ज़ल
जुनून-ए-दिल न सिर्फ़ इतना कि इक गुल पैरहन तक है
क़द ओ गेसू से अपना सिलसिला दार-ओ-रसन तक है