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ग़ज़ल
जिस ने दिए की कालक को भी माथे का सिंदूर किया
अपने घर की उस दीवार से अपना भेद छुपाए कौन
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
माथे पर सिन्दूर की बिंदिया थाली में कुछ सुर्ख़ गुलाब
नूर के तड़के ऊषा तट पर पूजा करने आई धूप
नो बहार साबिर
ग़ज़ल
बहनो तुम्हारी माँग का सिन्दूर क्या हुआ
बच्चों तुम्हारे हाथ में चाक़ू कहाँ से आए
शमसुद्दीन एजाज़
ग़ज़ल
दरियाओं से नूर लिया और मिट्टी को पुर-नूर किया
हरियाली को धरती माँ के माथे का सिंदूर किया