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ग़ज़ल
मिरी बंद पलकों पे टूट कर कोई फूल रात बिखर गया
मुझे सिसकियों ने जगा दिया मिरी कच्ची नींद उचट गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
जो बहार को भी अज़ीज़ थी वही शाम लुत्फ़-ओ-सुरूर की
जिसे सिसकियों की नज़र लगी उसी ज़िंदगी की तलाश कर
अफ़रोज़ आलम
ग़ज़ल
मेरे ख़ुश्क होंटों पर क़हक़हे तो हैं लेकिन
मेरी रूह के अंदर सिसकियों का मौसम है
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
क़दम क़दम पे है रक़्साँ उदासियों का झुण्ड
नफ़स नफ़स में उतरता है सिसकियों का झुण्ड