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ग़ज़ल
'अजब कुछ हाल हो जाता है अपना बे-क़रारी से
बजाते हैं कभी जब वो सितार आहिस्ता आहिस्ता
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर
जिसे सुन के अश्क छलक पड़ें वही धुन बजाओ सितार पर
विकास शर्मा राज़
ग़ज़ल
जुनूँ की रौ में हो रही है इक के बा'द इक ग़ज़ल
ये सिलसिला अभी सितारा-वार हो तो मा'ज़रत
अबीरा अहमद
ग़ज़ल
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
सितार-गाँ की बज़्म में उदास चाँद देखना
न-जाने कैसा ख़्वाब है न-जाने क्या इशारा है