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ग़ज़ल
हम भी मा'तूब तिरी चश्म-ए-सितम-गर के हुए
हाए जिस दर से गुरेज़ाँ थे उसी दर के हुए
रेहान अहमद तान्त्रे
ग़ज़ल
दर्द दिल में हों सुन ऐ यार-ए-सितम-गार कि तू
तू हुआ चोर तो फिर मैं हूँ गुनहगार कि तू
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
सितम-गर के सितम पर नौहा-ख़्वानी कर नहीं सकते
है ये इक कारोबार-ए-राएगानी कर नहीं सकते
आशुतोष तिवारी
ग़ज़ल
तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
हमीं हैं एक उन में जो तिरा ग़म खाने वाले हैं
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
पुष्पराज यादव
ग़ज़ल
असर बातों का तुझ पर अब सितम-गर कुछ नहीं होता
क़सी-उल-क़ल्ब इस दर्जा कि पत्थर कुछ नहीं होता
मीम मारूफ़ अशरफ़
ग़ज़ल
हसीन और उस पे ख़ुद-बीं वो सितम-गर यूँ भी है यूँ भी
नज़ारा क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत से बाहर यूँ भी है यूँ भी
क़ैसर हैदरी देहलवी
ग़ज़ल
शिकवा कभी न यार का लावेंगे मुँह पे हम
हम पर जफ़ा-ए-चर्ख़-ए-सितम-गार हो सो हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
भीक मँगवाई फ़क़ीरों की तरह शाहों को
ऐसी निय्यत तिरी ऐ चर्ख़-ए-सितम-गार फिरी