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ग़ज़ल
नफ़रत की सियासत 'आम हुई इख़्लास-ओ-मोहब्बत भूल गए
हम अपने बुज़ुर्गों की हिकमत पैग़ाम-ओ-नसीहत भूल गए
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
बख़्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुरअतें 'मजाज़'
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
'फ़ितरत' को है सियासत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ से काम
सरशार हो चुकूँगा तो फिर जाम आयेगा
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
तुम हो साक़ी तो अजब क्या है कि मयख़ाने में
एवज़-ए-सनअ'त-ए-जम साग़र-ए-सरशार बिके