aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "so.e"
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैंसो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं थाउस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आआ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
ख़ुद को जाना जुदा ज़माने सेआ गया था मिरे गुमान में क्या
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र हैआँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर काबात कर तुझ पर गुमाँ होने लगा तस्वीर का
जब भी दिल खोल के रोए होंगेलोग आराम से सोए होंगे
ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगेबहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है कम बे-शक पर उन को मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे
वो जो तुम्हारे हाथ से आ कर निकल गयाहम भी क़तील हैं उसी ख़ाना-ख़राब के
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दियातुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरीकोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
निचला रहा न सोज़-ए-दरूँ इंतिज़ार मेंइस आग ने सुरंग लगा दी मज़ार में
ये कहाँ की रीत है जागे कोई सोए कोईरात सब की है तो सब को नींद आनी चाहिए
मैं ने दुनिया से मुझ से दुनिया नेसैकड़ों बार बेवफ़ाई की
खंडर की तह से बुरीदा-बदन सरों के सिवामिला न कुछ भी ख़ज़ानों की आरज़ू कर के
सदा है फ़िक्र-ए-तरक़्क़ी बुलंद-बीनों कोहम आसमान से लाए हैं इन ज़मीनों को
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गईहम न सोए रात थक कर सो गई
जिन रातों में नींद उड़ जाती है क्या क़हर की रातें होती हैंदरवाज़ों से टकरा जाते हैं दीवारों से बातें होती हैं
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