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ग़ज़ल
कुछ तो मैं ही पागल था और कुछ था उस का पागल-पन
सोचो मैं ने झेला होगा कितना कितना पागल पन
प्रशांत शर्मा दराज़
ग़ज़ल
अब इस जोश-ए-ख़ुद-आगाही में आगे की क्या सोची है
शे'र कहोगे इश्क़ करोगे क्या क्या ढोंग रचाओगे
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
पहले क्या क्या कुछ कह डाला फिर ये कह कर साफ़ गए
कर डाली है भूल ज़बाँ ने सोची-समझी बात नहीं
जावेद जमील
ग़ज़ल
नून मीम दनिश
ग़ज़ल
बे-धड़क 'जोश' वो बढ़ते रहे मंज़िल की तरफ़
क़ाफ़िले वालों ने सोची नहीं अंजाम की बात