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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
कभी जब सोचने लगता हूँ पस-ए-मंज़र के बारे में
तो मेरे सामने हो कोई मंज़र भूल जाता हूँ
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को
इक कशिश है जो लिए फिरती है दर दर मुझ को