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ग़ज़ल
तिश्नगी होगी जहाँ बे-साख़्ता नौहा-कुनाँ
उस जगह हम दास्तान-ए-कर्बला ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
आहों की तमाज़त से सुलगते हैं दर-ओ-बाम
अब नौहा-कुनाँ होंटों पे शहनाई अता कर
सय्यद मोहम्मद अहमद नक़वी
ग़ज़ल
हर नफ़स बज़्म-ए-गुलिस्ताँ में ग़ज़ल-ख़्वाँ था कभी
हर नफ़स नाला-कशाँ नौहा-कुनाँ है कि नहीं
जाफ़र ताहिर
ग़ज़ल
दश्त-ए-जुनूँ में धूप कड़ी थी नौहा-कुनाँ थे सन्नाटे
जाने तेरी याद का बादल साया फ़गन क्यूँ पैहम था
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
सय्यद अमजद अलताफ़
ग़ज़ल
बज़्म-ए-‘ऐश में नौहा-कुनाँ हैं शहर-ए-तरब के बाशिंदे
और सगान-ए-कूचा-ए-वहशत मस्त सर-ए-बाज़ार बहुत