aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sola-si.nghaar"
हुस्न सोला सिंघार करता हैऔर कर आया है अठारह ग़म
इश्क़ रोता है आठ आठ आँसूहुस्न सोला-सिंघार में मसरूफ़
निगार-ए-शेर ने सोला-सिंगार जिस में किएवो आइना मिरे अश्कों का आईना निकला
यादों से कहो सोला-सिंगार आज कराएँआईना-ब-कफ़ हसरत-ए-दीदार खड़ी है
हर एक शाख़ पे चाँदी है खिल रही एहसानगुलों पे आया है सोला-सिंघार का मौसम
जनाब-ए-इश्क़ से कह दो बहुत हसीन है वोउन्हीं पे ख़त्म है सोला-सिंगार का आलम
मिरा चेहरा भोला ओ माहीपर रूप सँपोला ओ माही
सोलह-सिंघार उदासी ने किए हैं फिर सेइस को आराइश ओ तज़ईन से रोका जाए
मिरी निगाह की वीरानियों ने भी 'अरशद'‘उरूस-ए-वक़्त का सोलह-सिंघार देखा है
काम कोई तो नेक कर 'साग़र'देने वाला तुझे सिला देगा
तिलिस्म-ख़ाना-ए-सद-रंग-ओ-बू में ऐ 'साग़र'फ़रेब-ए-शोला-ओ-शबनम फ़रोख़्त होता है
अपनी क़िस्मत के नशेमन को जला दो साग़रचीख़ता फिरता है ये शोला-ए-तदबीर मिरा
कोई फ़ुट-पाथ पर सोता है बे-फ़िक्री से 'सागर'कोई फूलों के बिस्तर पर भी शब-भर जागता है
सोना चाँदी खा के 'साग़र' ज़िंदा रह सकते नहींज़िंदा रहने के लिए तो आब-ओ-दाना चाहिए
जब से बुलबुल तू ने दो तिनके लिएटूटती हैं बिजलियाँ इन के लिए
मुझ को तेरी चाहत ज़िंदा रखती हैऔर तुझे ये हालत ज़िंदा रखती है
गिराँ गुज़रने लगा दौर-ए-इंतिज़ार मुझेज़रा थपक के सुला दे ख़याल-ए-यार मुझे
क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँदसंगम पे रोज़-ओ-शब के ढला बार बार चाँद
ख़ुदा की देन से सामान-ए-ज़ीस्त क्या न मिलामगर यही कि मुझे ज़ीस्त का मज़ा न मिला
वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैंलेकिन आस के माँझी हर लहज़ा मौजों से खेले हैं
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