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ग़ज़ल
ख़ुश्क सोतों को जगाते हैं पयम्बर के क़दम
रेत से चश्मा उबलता है ग़ज़ल होती है
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
सोतों को जगाया मिरे नाले ने अदम के
पर ताल-ए-ख़्वाबीदा को बेदार न देखा
शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी
ग़ज़ल
जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हफ़्त अफ़्लाक हैं लेकिन नहीं खुलता ये हिजाब
कौन सा दुश्मन-ए-उश्शाक़ हैं इन सातों में
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
सातों आलम सर करने के बा'द इक दिन की छुट्टी ले कर
घर में चिड़ियों के गाने पर बच्चों की हैरानी देखो