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ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
जब इन की ज़ुल्फ़ों को सूँघा तो अंदलीब-ए-ख़याल
गुलाब ओ नर्गिस ओ रैहान से निकल आया
सय्यद सलमान गीलानी
ग़ज़ल
वो सुँघा कर ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं होश में लाए मुझे
साँप ने चूसा है अपने ज़हर की तासीर को
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न मैं लाग हूँ न लगाव हूँ न सुहाग हूँ न सुभाव हूँ
जो बिगड़ गया वो बनाव हूँ जो नहीं रहा वो सिंगार हूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मर्ग-ए-'जिगर' पे क्यूँ तिरी आँखें हैं अश्क-रेज़
इक सानेहा सही मगर इतना अहम नहीं