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ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है
वो हँसती आँखें पूछती हैं ये कितना गहरा पानी है
सलीम अहमद
ग़ज़ल
जिस का चाँद सा चेहरा था और ज़ुल्फ़ सुनहरी बादल सी
मस्त हवा का आँचल थामे एक दिवानी लगती थी
फ़रह इक़बाल
ग़ज़ल
सुनहरी धूप फैली हो कहीं यादों के जंगल में
तो किरनें बन के मुस्काना मिरी आँखों के मौसम में
फ़रह इक़बाल
ग़ज़ल
मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ
वतन की ख़ाक ले कर एक मुट्ठी छोड़ देता हूँ