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ग़ज़ल
सुर्ख़-रू नज़रों में होने का बहाना चाहूँ
जो मिरे पास है सब तुझ पे गँवाना चाहूँ
राशिद अनवर राशिद
ग़ज़ल
मिरे भी सुर्ख़-रू होने का इक मौक़ा निकल आता
ग़म-ए-जानाँ के मलबे से ग़म-ए-दुनिया निकल आता
यूसुफ़ तक़ी
ग़ज़ल
नासिर अंसारी
ग़ज़ल
सुर्ख़-रू होने के क़ाबिल क्या हिना थी मैं न था
आप के क़दमों के नीचे उस को जा थी मैं न था