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ग़ज़ल
हाथ तो सुर्ख़ कई दिन से हैं उन के 'शाहिद'
ख़ून-ए-नाहक़ है कि है रंग-ए-हिना देखो तो
शाहिद भोपाली
ग़ज़ल
देखते-देखते दिल की हालत कैसी बदल गई
कैसे चेहरों में तहलील हुए हैं सुर्ख़ गुलाब
महेंद्र कुमार सानी
ग़ज़ल
सरक़ा-बाज़ी पे भी मिलते हैं उन्हें सुर्ख़ गुलाब
नाम मे'यार है अब दाद का अश'आर नहीं
ताहिर सऊद किरतपूरी
ग़ज़ल
सरक़ा-बाज़ी पे भी मिलते हैं उन्हें सुर्ख़ गुलाब
नाम मे'यार है अब दाद का अश'आर नहीं
ताहिर सऊद किरतपूरी
ग़ज़ल
माथे पर सिन्दूर की बिंदिया थाली में कुछ सुर्ख़ गुलाब
नूर के तड़के ऊषा तट पर पूजा करने आई धूप
नो बहार साबिर
ग़ज़ल
गहरे सुर्ख़ गुलाब का अंधा बुलबुल साँप को क्या देखेगा
पास ही उगती नाग-फनी थी सारे फूल वहीं मिलते हैं