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ग़ज़ल
शफ़ीक़ बरेलवी
ग़ज़ल
मुकम्मल सुर्ख़ी-ए-अफ़्साना-ए-दिल होती जाती है
हमारी दास्ताँ सुनने के क़ाबिल होती जाती है
शिफ़ा ग्वालियारी
ग़ज़ल
क्या लिखूँ क्या न लिखूँ सुर्ख़ी-ए-अफ़साना-ए-दिल
ग़म भी है दर्द भी हसरत भी है फ़रियाद भी है
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
किस का किस का हाल सुनाया तू ने ऐ अफ़्साना-गो
हम ने एक तुझी को ढूँडा इस सारे अफ़्साने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको
वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'इंशा' जी क्या उज़्र है तुम को नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो
रूप-नगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
किस का चमकता चेहरा लाएँ किस सूरज से माँगें धूप
घोर अँधेरा छा जाता है ख़ल्वत-ए-दिल में शाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हाँ यही शख़्स गुदाज़ और नाज़ुक होंटों पर मुस्कान लिए
ऐ दिल अपने हाथ लगाते पत्थर का बन जाएगा