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ग़ज़ल
सू-ए-ज़न था जिस के मुँह पर नुत्क़ का इतलाक़ भी
गुफ़्तुगू से उस की हैराँ ख़ुद लब-ए-तक़रीर है
मुनीर भोपाली
ग़ज़ल
इस दर्जा सू-ए-ज़न है हर बात दिल शिकन है
लाए कहाँ से हर दिन इक दिल नया ब-दिल-गीर
नूर जहाँ बेगम नूर
ग़ज़ल
बे-यक़ीनी सू-ए-ज़न ईमान-ए-नाक़िस की दलील
फ़िक्र-ए-राहत खतरा-ए-ग़म के सिवा कुछ भी नहीं
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
करम उन का ख़ुद है बढ़ कर मिरी हद्द-ए-इल्तिजा से
मुझे सू-ए-ज़न नहीं है कि दुआ करूँ ख़ुदा से
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मरता हूँ और जा नहीं सकता सू-ए-अदम
मुझ ना-तवाँ को तौक़-ओ-सलासिल से क्या ग़रज़