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ग़ज़ल
नक़्श-ए-वहदत ही सुवैदा को कहा करते हैं
दिल में इक तिल है और उस तिल में ख़ुदा बैठा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
किया यक-सर गुदाज़-ए-दिल नियाज़-ए-जोशिश-ए-हसरत
सुवैदा नुस्ख़ा-ए-तह-बंदी-ए-दाग़-ए-तमन्ना है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जुनूँ गर्म इंतिज़ार ओ नाला बेताबी कमंद आया
सुवैदा ता ब-लब ज़ंजीरी-ए-दूद-ए-सिपंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हज़ारों दिल दिये जोश-ए-जुनून-ए-इश्क़ ने मुझ को
सियह हो कर सुवैदा हो गया हर क़तरा-ए-ख़ूँ तन में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
काम क्या दाग़-ए-सुवैदा का हमारे दिल पर
नक़्श-ए-उल्फ़त को मिटाते हो ये क्या करते हो
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
फ़ुर्क़त में सब अच्छे रहे दिल का मगर ये हाल है
ज़ख़्म इक तरफ़ बढ़ता गया दाग़-ए-सुवैदा इक तरफ़
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
बोल ऐ ताइब मिटा नक़्श-ए-सुवैदा किस तरह
लौह-ए-दिल पर लफ़्ज़-ए-हक़ मर्क़ूम कैसे हो गया
क़ासिम जलाल
ग़ज़ल
सुवैदा को मिरे निस्बत बहुत है संग-ए-असवद से
मगर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-मोहम्मद से ज़ियादा है
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
शर्म से तुम को सिमटना है तो सिम्टो हुस्न से
दिल में बन जाओ सुवैदा पुतलियों में तिल बनो
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
हमा-तन दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-बुताँ हूँ 'फ़ानी'
दिल से भाता है मुझे नक़्श-ए-सुवैदा होना
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
दूद-ए-अफ़्ग़ान-ओ-रग-ए-जान-ओ-सुवैदा दिल में है
बंद है क़िंदील के अंदर धुआँ बत्ती चराग़