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ग़ज़ल
यासमीन हमीद
ग़ज़ल
मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ग़म तुम्हारी ख़ैर तो है
तड़ख़ के टूट गया क्यूँ मिरा नगीना-ए-ख़्वाब
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ग़म तुम्हारी ख़ैर तो है
तड़ख़ के टूट गया क्यूँ मिरा नगीना-ए-ख़्वाब