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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे
तड़पते हैं फ़ुग़ाँ करते हैं और करवट बदलते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
किसी के पास रह कर भी तड़पते हिज्र में 'नादिर'
हमें जन्नत में भी कुछ आसरा होता तो क्या होता