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ग़ज़ल
न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है
न मलाल रद्द-ए-दुआ का हो वही इश्क़ है
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
रोज़-ए-जज़ा उमीद है सब को सज़ा मिले
इक़दाम-ए-क़त्ल में हैं मिरे सब हसीं शरीक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इस तिलिस्म-ए-रोज़-ओ-शब से तो कभी निकलो ज़रा
कम से कम विज्दान के सहरा ही में घूमो ज़रा
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ग़ज़ल
इसी मामूल-ए-रोज़-ओ-शब में जी का दूसरा होना
हवादिस के तसलसुल में ज़रा सा कुछ नया होना
सुहैल अहमद ज़ैदी
ग़ज़ल
क़यामत आएगी या आ गई इस की शिकायत क्या
क़यामत क्यूँ न हो जब फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-जज़ा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ख़िराम फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-जज़ा ब-ईं शोख़ी
तिरे ख़िराम के ओहदे से बर नहीं आती
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सरगर्म है दिल शाफ़ा-ए-महशर की तलब में
काफ़िर हूँ अगर कुछ भी ग़म-ए-रोज़-ए-जज़ा है