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ग़ज़ल
ज़िंदाँ की सलाख़ों सी हैं पानी की ये तारें
सय्याद से कुछ कम नहीं हर-वक़्त की बारिश
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
इक अजब सी नग़्मगी रहती थी क़ल्ब-ओ-रूह में
साँस की मिज़राब और धड़कन की तारें थीं वहाँ
नीलम मालिक
ग़ज़ल
कहीं तार-ए-दामन-ए-गुल मिले तो ये मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ल-ए-बहार का सर-ए-शाख़-सार कोई तो हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तेरे बिन रात के हाथों पे ये तारों के अयाग़
ख़ूब-सूरत हैं मगर ज़हर के प्यालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
वर्ना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं