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ग़ज़ल
रूह-ए-कुल से सब रूहों पर वस्ल की हसरत तारी है
इक सर-ए-हिकमत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
जौन एलिया
ग़ज़ल
हाल ख़ूँ में डूबा है कल न जाने क्या होगा
अब ये ख़ौफ़-ए-मुस्तक़बिल ज़ेहन ज़ेहन तारी है
मंज़र भोपाली
ग़ज़ल
अजब सी ख़ुद फ़रामोशी है मुझ पर रात-दिन तारी
मिरे ऐ दोस्त पढ़ मंतर मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
दी तू ने मुझे सल्तनत-ए-बहर-ओ-बर ऐ इश्क़
होंटों को जो ख़ुश्की मिरी आँखों को तरी दी